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ओशो – अपनी नींद में ध्‍यान कैसे करें

धीरे-धीरे ध्‍यान तुम्‍हारे संपूर्ण जीवन में व्‍याप्‍त हो जाना चाहिए। यहां तक की सोने के लिए जाते समय भी।

बिस्‍तर पर लेटने पर कुछ ही मिनटों में तुम नींद की गोद में चले जाओगे। इन कुछ मिनटों में मौन, अँधेरा और विश्रांत शरीर इनके संबंध में सजग रहो। जब तक पूरी तरह से नींद न आ जाए तब तक ऊँघते समय सजग रहो और तुमको आश्‍चर्य होगा। जब तक पूरी तरह नींद आती है तब तक के अंतिम क्षण तक यदि तुम ऐसा अभ्‍यास जारी रखते हो तो फिर सुबह में भी पहला विचार सजगता के संबंध में ही होगा। सोते समय जो तुम्‍हारा अंतिम विचार होगा वही सुबह में जागने पर पहला विचार होगा क्‍योंकि तुम्‍हारी नींद के दौरान यह अंतर-प्रवह के रूप में जारी रहता है।

ध्‍यान के लिए किसी के पास समय नहीं है—दिन में बहुत व्‍यस्‍तता रहती है। लेकिन रात के छह आठ घंटों को ध्‍यान में बदला जा सकता है। तुम पानी से नहाते हो। ऐसा तुम सजगता के साथ क्‍यों नहीं करते हो? रोबट की तरह यांत्रिक रूप से क्‍यों? तुम ऐसा हर रोज करते हो। इसलिए तुम करते जाते हो। और यह यंत्रवत हो जाता है। हर काम जीवंत होकर करो। धीरे-धीरे तुम्‍हारा संपूर्ण दिन, चौबीसों घंटे ध्‍यान से भर जाएगा। तभी तुम सही मार्ग पर हो। तब तुम्‍हें सफलता मिलने की पूरी गारंटी है।

  1. रात को बत्‍ती बुझा दो, बिस्‍तर पर बैठ जाओ। और ‘ओ’ ध्‍वनि करते हुए मुंह से गहरी श्‍वास छोड़ो। पूरी तरह से श्‍वास छोड़ने के बार एक मिनट के रूक जाओ। न तो श्‍वास लो और न ही छोड़ो—केवल रूक जाओ। इस ठहराव में तुम कुछ भी नहीं कर रहे हो। श्‍वास भी नहीं ले रहे हो।
    केवल एक क्षण के लिए उस ठहराव में रहो। और साक्षी बनो। देखो कि क्‍या हो रहा है। सजग रहो कि तुम कहां हो। उस ठहराव के एक क्षण में संपूर्ण परिस्‍थिति का साक्षी बनो। वहां समय नहीं रहता। क्‍योंकि समय श्‍वास के साथ चला जाता है। तुम श्‍वास लेते हो इसलिए तुम महसूस करते हो कि समय बीत रहा है। समय रूक गया है तो सब कुछ रूक गया है…उस ठहराव में तुम अपने अंतस और ऊर्जा के गहनत्म स्‍त्रोत के प्रति सजग हो सकते हो।
  2. तब नाक से श्‍वास लो, श्‍वास लेने के लिए अतिरिक्‍त प्रयास मत करो। श्‍वास छोड़ने के लिए ही पूरा प्रयास करो। तुमने श्‍वास छोड़ दिया, फिर एक क्षण के लिए रूक जाओ, तब शरीर को श्‍वास लेने दो। तुम केवल शरीर पर ध्‍यान दो। और जब शरीर श्‍वास लेगा तब तुम अपने चारों और एक गहन मौन महसूस करोगे। क्‍योंकि तब तुम जानोंगे कि जीवन के लिए प्रयास करने की आवश्‍यकता नहीं है। जीवन स्‍वयं श्‍वास लेता है। जीवन स्‍वयं अपने तरीके से चलता है। यह एक नदी है। तुम इसमें अनावश्यक ही वेग उत्‍पन करने का प्रयास करते हो।
  3. तुम देखोगें कि शरीर श्‍वास लेता है। इसमें तुम्‍हारे प्रयास की आवश्‍यकता नहीं है। इसमें तुम्‍हारे अहं की आवश्‍यकता नहीं—तुम्‍हारी आवश्‍यकता नहीं। तुम केवल एक साक्षी हो जाते हो। तुम केवल शरीर को श्‍वास लेते देखते हो। गहन मौन की अनुभूति होगी। शरीर में पूरी तरह श्‍वास भर जाने पर एक क्षण के लिए फिर से रूक जाओ। फिर गौर करो।
    ये दोनों क्षण एक दूसरे से बिलकुल भिन्‍न है। जिन्‍होंने जीवन की आंतरिक प्रक्रिया को देखा है वे गहराई के साथ कहते है कि प्रत्‍येक बार श्‍वास लेने के साथ तुम जन्‍मते हो और प्रत्‍येक श्‍वास छोड़ने के साथ तुम मरते हो। प्रत्‍येक क्षण जन्‍म लेते हो। एक बार तुम जान लेते हो कि यह जीवन है और यह मृत्‍यु है। तब तुम इन दोनों से पार हो जाते हो। साक्षी होना न तो जीवन है और न ही मृत्‍यु। साक्षी न तो कभी जन्‍म लेता है और न ही कभी मरता है। केवल शरीर मरता है। केवल कायित संरचना समाप्‍त होती है।
  4. इसी रात बीस मिनट तक इस ध्‍यान को करो और फिर सो जाओ। सुबह जब तुम महसूस करो कि नींद तुम्हें छोड़ कर चली गई है तब तुरंत अपनी आंखें मत खोलों। जब नींद तुम्‍हें छोड़ देती है और जीवन ऊर्जा तुम्‍हारे अंदर जगने लगती है तब तुम उसे देख सकते हो। ध्‍यान की गहराई में जाने के लिए यह देखना सहायक होगा।
  5. रात भर के विश्राम के बाद मन ताजा है, शरीर ताजा है; सब कुछ तरोताजा है। भारहीन है। कोई धूल नहीं, थकान नहीं—तुम गहराई से गौर से देखते हो। तुम्‍हारी आंखें स्‍वच्‍छ है। सब कुछ जीवंत है। इस क्षण को मत गंवाओ। नींद से जागरण में बदलने वाली ऊर्जा को महसूस करो। ध्‍यान से देखो।
  6. तीन मिनट तक अपने शरीर को बिल्‍ली की तरह खींचो—लेकिन आंखें बंद करके। अंतस से शरीर को देखो। खींचो, आगे बढ़ो और ऊर्जा को प्रवाहित होने दो। तथा इसे महसूस करो। जब यह तरोताजा रहता है। तब इसे महसूस करना अच्‍छा है। यह अनुभूति पूरे दिन तुम्‍हारे साथ रहेगी।
  7. इसे दो तीन मिनट तक करो। यदि तुम्‍हें आनंद आ रहा है तो पाँच मिनट तक। और तब दो-तीन मिनट तक पागल की तरह जोर से हंसों, लेकिन आंखे मूंदकर। ऊर्जाऐं प्रवाहित हो रही है। शरीर सजग, सचेत और जीवंत है। नींद जा चुकी है। तुम नई ऊर्जा से भर जाते हो।
  8. पहला काम हंसना है क्‍योंकि यह दिन भर की गतिविधि तय करता है। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम महसूस करोगे कि तुम खुशमिजाज रहते हो। तुम्‍हारा पूरा दिन आनंदमय रहता है। दूसरे क्‍या कहेंगे उसकी परवाह मत करो। हंसों ओर उन्‍हें हंसने में मदद करो।

याद रखो कि दिन के पहले काम से दिन की दूसरी गतिविधि तय होती है। और रात का अंतिम काम भी रात की रूप रेखा तय करता है। इसलिए सोते समय विश्रांत रहो और जब जागों तो हंसते हुए जागों। हंसना दिन की पहली प्रार्थना बने। हंसी महन स्‍वीकृति दिखाता है। हंसी उत्‍सव दिखाता है। हंसी दिखाता है कि जीवन अच्‍छा है।

सुबह का पहला काम यह है कि शरीर की बिल्‍ली की तरह खींचो और फिर हंसों, और इसके बाद ही बिस्‍तर छोड़ो। पूरा दिन अलग तरह से गुजरेगा।

ओशो
वेदांता: सेवन स्‍टेप्‍स टु समाधि

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ओशो —हर चक्र की अपनी नींद

सहस्‍त्रार को छोड़ कर प्रत्‍येक चक्र की अपनी नींद है। सातवें चक्र में बोध समग्र होता है। यह विशुद्ध जागरण की अवस्‍था है। इसीलिए कृष्‍ण गीता में कहते है कि योगी सोता नहीं।

‘योगी’ का अर्थ है जो अपने अंतिम केंद्र पर पहुंच गया। अपनी परम खिलावट पर जो कमल की भांति खिल गया। वह कभी नहीं सोता। उसका शरीर सोता है। मन सोता है। वह कभी नहीं सोता। बुद्ध जब सो भी रहे होते है तो अंतस में कहीं गहरे में प्रकाश आलोकित रहता है। सातवें चक्र में निद्रा का कोई स्‍थान नहीं होता। बाकी छ: चक्रों में यिन और यैंग, शिव और शक्‍ति, दोनों है। कभी वे जाग्रत होते है और कभी सुषुप्‍ति में—उनके दोनों पहलू है।

जब तुम्‍हें भूख लगती है तो भूख का चक्र जाग्रत हो जाता है। यदि आपने कभी उपवास किया तो आप चकित हुए होंगे। शुरू में पहले दो या तीन दिन भूख लगती है। और फिर अचानक भूख खो जाती है। यह फिर लगेगी और फिर समाप्‍त हो जाएगी। फिर लगेगी……ओर तुम कुछ भी नहीं खा रहे हो। इसलिए तुम यह भी नहीं कह सकते हो कि ‘भूख मिट गई। क्‍योंकि मैंने कुछ खा लिया है।’ तुम उपवास किए हो, कभी-कभी तो भूख जोरों से लगती है। तुम तड़पा जाते हो। लेकिन यदि तुम बेचैन नहीं होते हो तो यह समाप्‍त हो जायेगी। चक्र सो गया है। दिन में फिर एक समय आएगा जब यह जगेगा। और फिर सो जायेगा।

काम केंद्र में भी ऐसा ही होता है। काम-वासना जगती है, तुम उसमें उतरते हो और संपूर्ण वासना तिरोहित हो जाती है। चक्र सो गया है। यदि तुम बिना दमन किए ब्रह्मचर्य का पालन करो तो तुम हैरान रह जाओगे। यदि तुम काम वासना का दमन न करो और केवल साक्षी रहो….तीन महीने के लिए यह प्रयोग करो—बस साक्षी रहो। जब काम वासना उठे, शांत बैठ जाओ। इसे उठने दो। इसे द्वार खटखटाने दो, आवाज सुनो, ध्‍यान में सुनो लेकिन इसके साथ बह मत जाओ। इसे उठने दो इसे दबाओ मत। इसमें लिप्‍त मत होओ। साक्षी बने रहो। और तुम जान कर चकित रह जाओगे। कभी-कभी वासना इतनी तीव्रता से उठती है कि लगता है पागल हो जाओगे। और फिर स्‍वय: ही तिरोहित हो जाएगी। जैसे कभी थी ही नहीं। वह फिर लौटेगी, फिर चली जाएगी।

चक्र चलता रहता है। कभी-कभी दिन में वासना जगेगी। और फिर रात में सो जाएगी। और सातवें चक्र के नीचे सब छ: चक्रों में ऐसा ही होता है।

निद्रा का अपना अगल चक्र नहीं है।

लेकिन सहस्‍त्रार के अतिरिक्‍त प्रत्‍येक चक्र में इसका अपना स्‍थान है। तो एक बात और समझ लेने जैसी है—जैसे-जैसे तुम ऊपर के चक्रों में प्रवेश करते जाओेगे तुम्‍हारी नींद की गुणवता बेहतर होती जाएगी क्‍योंकि प्रत्‍येक चक्र में गहरी विश्रांति का गुण है। जो व्‍यक्‍ति मूलाधार चक्र पर केंद्रित है उसकी नींद गहरी न होगी। उसकी नींद उथली होगी क्‍योंकि यह दैहिक तल पर जीता है। भौतिक स्‍तर पर जीता है। मैं इन चक्रों कि व्‍याख्‍या इस प्रकार भी कर सकता हूं।

  1. प्रथम, भौतिकमूलाधार
  2. दूसरा, प्राणाधारस्‍वाधिष्‍ठान
  3. तीसरा, काम या विद्युत केंद्रमणिपूर
  4. चौथा, नैतिक अथवा सौंदयपुरकअनाहत
  5. पांचवां, धार्मिकविशुद्ध
  6. छठा, आध्‍यात्‍मिकआज्ञा
  7. सातवां, दिव्‍यसहस्‍त्रार

जैसे-जैसे ऊपर जाओगे तुम्‍हारी नींद गहरी हो जाएगी। और इसका गुणवता बदल जायेगी। जो व्‍यक्‍ति भोजन ग्रसित है और केवल खाने के लिए जीता है। उसकी नींद बेचैन रहेगी। उसकी नींद शांत न होगी। उसमें संगीत न होगा। उसकी नींद एक दु:ख स्वप्न होगी। जिस व्‍यक्‍ति का रस भोजन में कम होगा और जो वस्‍तुओं की बजाएं व्‍यक्‍तियों में अधिक उत्‍सुक होगा, लोगों के साथ जुड़ना चाहता है। उसकी नींद गहरी होगी। लेकिन बहुत गहरी नहीं। निम्‍नतर क्षेत्र में कामुक व्‍यक्‍ति की नींद सर्वाधिक गहरी होगी। यही कारण है कि सेक्‍स का लगभग ट्रैक्‍युलाइजर, नशे की तरह उपयोग किया जाता है। यदि तुम सो नहीं पार रहे हो तो और तुम संभोग में उतरते हो तो शीध्र ही तुम्‍हें नींद आ जायेगी। संभोग तुम्‍हें तनाव मुक्‍त करता है। पश्‍चिम में चिकित्‍सक उन सबको सेक्‍स की सलाह देते है जिन्‍हें नींद नहीं आ रहा है। अब तो वे उन्‍हें भी सेक्‍स की सलाह देते है जिन्‍हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा है। क्‍योंकि सेक्‍स तुम्‍हें विश्रांत करता है। तुम्‍हें गहरी नींद प्रदान करता है। निम्‍न तल पर सेक्‍स तुम्‍हें सर्वाधिक गहरी नींद देता है।

जब तुम और ऊपर की और जाते हो, चौथे अनाहत चक्र पर तो नींद अत्‍यंत निष्‍कंप, शांत, पावन व परिष्‍कृत हो जाती है। जब तुम किसी से प्रेम करते हो तो तुम अत्‍यंत अनूठी विश्रांति का अनुभव करते हो। मात्र विचार कि कोई तुम्‍हें प्रेम करता है। और तुम किसी से प्रेम करते हो। तुम्‍हें विश्रांत कर देता है। सब तनाव मिट जाते है। एक प्रेमी व्‍यक्‍ति गहरी निद्रा जानता है। धृणा करो तो तुम सो न पाओगे। क्रोध करो तो तुम सो न पाओगे। तुम नीचे गिर जाओगे। प्रेम करो, करूणा करो। और तुम गहरी नींद आएगी।

पांचवें चक्र के साथ नींद लगभग प्रार्थना पूर्ण बन जाती है। इसी लिए सब धर्म लगभग आग्रह करते है कि सोने से पहले तुम प्रार्थना करो। प्रार्थना को निद्रा के साथ जोड़ दो। प्रार्थना के बिना कभी मत सोओ। ताकि निद्रा में भी तुम्‍हें उसके संगीत का स्‍पंदन हो। प्रार्थना की प्रतिध्‍वनि तुम्‍हारी नींद को रूपांतरित कर देती है।

पांचवां चक्र प्रार्थना है—और यदि तुम प्रार्थना कर सकते हो तो और अगली सुबह तुम चकित होओगे। तुम उठोगे ही प्रार्थना करते हुए। तुम्‍हारा जागना ही एक तरह की प्रार्थना होगी। पांचवें चक्र में नींद प्रार्थना बन जाती है। यह साधारण नींद नहीं रहती।

तुम निद्रा में नहीं जा रहे। बल्‍कि एक सूक्ष्‍म रूप से परमात्‍मा में प्रवेश कर रहे हो। निद्रा एक द्वार है जहां तुम अपना अहंकार भूल जाते हो। और परमात्‍मा में खो जाना आसान होता है। जो कि जाग्रत अवस्‍था में नहीं हो पाता। क्‍योंकि जब तुम जागे हुए होते हो तो अहंकार बहुत शक्‍तिशाली होता है।

जब तुम गहरी निद्रावस्‍था में प्रवेश कर जाते हो तुम्‍हारी आरोग्‍यता प्रदान करने वाली शक्‍तियों की क्षमता सर्वाधिक होती है। इसीलिए चिकित्‍सक का कहना है कि यदि कोई व्‍यक्‍ति बीमार है और सो नहीं पाता तो उसके ठीक होने की संभावना कम हो जाती है। क्‍योंकि आरोग्‍यता भीतर से आती है। आरोग्‍यता तब आती है। जब अहंकार का आस्‍तित्‍व बिलकुल नहीं बचता। जो व्‍यक्‍ति पांचवें चक्र—प्रार्थना के चक्र तक पहुंच गया है। उसका जीवन एक प्रसाद बन जाता है। जब वह चलता है तो उसकी भाव भंगिमाओं में आप एक विश्रांति का गुण पाओगे।

आज्ञा चक्र, अंतिम चक्र है जहां नींद श्रेष्‍ठतम हो जाती है। इसके पार नींद की आवश्‍यकता नहीं रहती, कार्य समाप्‍त हुआ। छटे चक्र तक निद्रा की आवश्‍यकता है। छठे चक्र में निद्रा ध्‍यान में रूपांतरित हो जाती है। प्रार्थना पूर्ण ही नहीं,ध्‍यानपूर्ण।

क्‍योंकि प्रार्थना में द्वैत है। मैं और तुम, भक्‍त और भगवान। छठवें में द्वैत समाप्‍त हो जाता है। निद्रा गहन हो जाती है। इतनी जितनी की मृत्‍यु। वास्‍तव में मृत्‍यु और कुछ नहीं बल्‍कि एक गहरी नींद है और कुछ नहीं बल्‍कि एक छोटी-सी मृत्‍यु है। छठे चक्र के साथ नींद अंतस की गहराई तक प्रवेश हो जाती है। और कार्य समाप्‍त हो जाता है।

जब तुम छठे से सातवें तक पहुंचते हो तो निद्रा की आवश्‍यकता नहीं रहती।
तुम द्वैत के पार चले गए हो। तब तुम कभी थकते ही नहीं। इसलिए निद्रा की आवश्‍यकता नहीं रहती है।

यह सातवीं अवस्‍था विशुद्ध जागरण की अवस्‍था है।

ओशो
दि डिवाइन मैलडी